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गुरू प्रार्थनाष्टक


1. परम पावन गुरू, तेरी हूँ दावन गुरू,
आवन जावन गुरू, मेरा ही मिटाइये।
हम है अजान गुरू, आप हो सुजान गुरू
आतम का ज्ञान गुरू, मुझको सुनाइये।
तरन तारन गुरू, करन कारन गुरू,
विध्न टारन गुरू, बिगड़ी बनाईये।
कहे टेऊँ सति गुरू, राखो मेरी पति गुरू,
ऊँची कर मति गुरू, चरन लगाइये॥

2. परम दयाल गुरू, परम कृपाल गुरू,
परम उजाल गुरू, ज्योति को जगाईये।
सुन्दर सुचाल गुरू, नित ही निहाल गुरू,
अमर अकाल गुरू, यम से बचाइये॥
गोविन्द गोपाल गुरू, प्रभु प्रतिपाल गुरू,
राम रखपाल गुरू, बन्धन छुड़ाइये।
कहे टेऊँ सतिगुरू, राखो मेरी पति गुरू,
ऊँची कर मति गुरू, चरन लगाइये॥

3. परम उदारी गुरू, परम भण्डारी गुरू,
परम आधारी गुरू, नाम को जपाइये।
पर दु:खी हारि गुरू, पर सुखकारी गुरू,
पर उपकारी गुरू, हरि से मिलाइये॥
नित अवतारी गुरू, शुभ गुणकारी गुरू,
कर रखवारी गुरू, ताप को जलाइये।
कहे टेऊं सतिगुरू राखो मेरी पति गुरू,
ऊँची कर मति गुरू, चरन लगाइये॥

4. शाहन के शाह गुरू, सच्चा पातिशाह गुरू,
बिन परवाह गुरू, विपत्ति हटाइये।
बेवाहन वाह गुरू, बेराहन राह गुरू,
गुणन अथाह गुरू, मारग बताईये॥
दया के दर्याह गुरू, दोषन के दाह गुरू,
बख्श गुनाह गुरू, मोहि न भुलाइये।
कहे टेऊँ सतिगुरू, राखो मेरी पति गुरू,
ऊँची कर मति गुरू, चरन लगाइये॥

5. राजन के राज गुरू, संत सिरताज गुरू,
महा महाराज गुरू, मोहि अपनाइये।
गरीब निवाज गुरू, राखो मेरी लाज गुरू,
पूरे कर काज गुरू, अज्ञान उड़ाइये॥
भव जल पाज गुरू, सुखन समाज गुरू,
तारक जहाज गुरू,भव से तराइये।
कहे टेऊँ सतिगुरू, राखो मेरी पति गुरू,
ऊँची कर मति गुरू, चरन लगाइये॥

6. ब्रह्म के स्वरूप गुरू, आत्म अनूप गुरू,
अमल अरूप गुरू, द्वन्द्व को गलाइये।
अगम अगाध गुरू, अमर अबाध गुरू,
अचल अनाद गुरू, अभेद बनाइये॥
देवन के देव गुरू, अलख अभेद गुरू,
अटल अखेव गुरू, स्वरूप लखाइये।
कहे टेऊँ सतिगुरू, राखे मेरी पति गुरू,
ऊँची कर मति गुरू, चरन लगाइये॥

7. पूरन सुज्ञानी गुरू, पूरन सुध्यानी गुरू,
पूरन सुदानी गुरू, प्रेम को पिलाइये।
शरण पालन गुरू, संकट घालक गुरू,
मेरे हो मालिक गुरू, दरस दिखाइये॥
करूणा निधान गुरू, सद् मेहरबान गुरू,
कर ले कल्याण गुरू, सुमति सिखाइये।
कहे टेऊँ सतिगुरू, राखो मेरी पति गुरू,
ऊँची कर मति गुरू, चरन लगाइये॥

8. निओटन ओट गुरू, काटो भ्रम कोट गुरू,
मेटो यम चोट गुरू, पापन पलाइये।
वीरन के वीर गुरू, धीरन के धीर गुरू,
पीरन के पीर गुरू, शान्ति में समाइये॥
तुम धन धन गुरू, मैं हूँ तेरा जन गुरू,
मारे मेरा मन गुरू, दोषन दलाइये।
कहे टेऊँ सतिगुरू, राखो मेरी पति गुरू,
ऊँची कर मति गुरू, चरन लगाइये॥



©Prem Prakash Ashram,Adarsh Nagar,Ajmer