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ऊँ श्री सतनाम साक्षी

स्वामी माधवदास जी की महिमा अपरम्पार है। स्वामी जी साईं टेऊँ राम जी के परम भक्त थे । उनका जीवन दर्शन बेअन्त है। वे अपने भक्तों के हमराह, उनके कष्ट निवारक थे। अपने भक्तों की पीड़ा दूर कर उन्होंने उस पीड़ा व कष्ट को अपने ऊपर लिया । वे शाहों को शाह तथा दानवीर थे।

जो भी उनकी शरण में आता था उसे वह अपने प्यार व आशीर्वाद से मालामाल कर देते थे। कृष्ण की भांति हर भक्त को लगता था सार्ईं केवल हमारे है। ऐसे सबुर, शुकर व प्रेम की मूर्ति के चरणों में बार-बार प्रणाम।

साईं लीला उनके भक्तों पर उनके द्वारा की गयी करूणा व प्रेम वर्षा का संकलन है। यह साईं के भक्तों के व्यक्तिगत अनुभव है व उनके साथ घटित चमत्कारों का संकलन है। आशा है इसे पढ़कर हमारे भक्तगण अवश्य लाभांवित होंगे।

अनुभव १

बात उस दिनों की है जब पुष्कर आश्रम का कार्य चल रहा था। स्वामी जी हर रोज कार्य की देख रेख के लिये जाया करते थे।

एक बार स्वामी जी पुष्कर जाने के लिये तैयार हो रहे थे। संयोगवश मैं भी वहां आया हुआ था। साईं ने अपनी कुटिया में अलमारी से मुझे चोगा (कुर्ता) निकालने के लिये कहा। वे मात्र अपने लिये दो चोगे (ड्रेस ) रखते थे। मैंने निकालकर दिया वे कहने लगे देखो इस चोगे की दोनो जेब में कुछ है तो नही। मैं दोनों जेब टटोल कर देखा। मैं बोला साईं कुछ नहीं है। उन्होंने वह चोगा पहना फिर हम कार के द्वारा पुष्कर के लिये रवाना हुए। रास्तें में कार के लिये पेट्रोल भरवाना था । पेट्रोल पम्प पर कार रोकी। पेट्रोल के लिये पैसे नहीं थे। तब वहां के संचालक ने कहा कोई बात नहीं साईं पैसे बाद में आ जायेंगे। हम पेट्रोल भरवाकर पुष्कर पहुँचे। वहां कार्यरत ठेकेदार जी स्वामी जी से मिले। बोले साईं आज शनिवार का दिन है। आप पैसे लाये है। साईं ने कहा आपने तो बताया ही नहीं पहले। तब ठेकेदार व्याकुल हो उठा तथा रोने लगा। कहने लगा साई मुझे आज सारे मजदूरों को पैसे देने है नहीं तो वे कार्य नहीं करेंगे। मुझे मार डालेंगे।

साईं ने कहा धीरज रखिये। चलिये आरती करते है। ठेकेदार जी कहने लगे आरती से क्या होगा? साई ने कहा चलो आरती करते है। सब ठीक हो जायेगा। साईं जी ने वहां ऊपर मन्दिर में साईं टेऊँराम जी की आरती की व पल्लव पहना व साईं टेऊँ राम की परिक्रमा की।

आरती के बाद साईं ने मुझसे कहा वाशी देखो जेब में पैसे है। मैंने उनकी जेब में हाथ डालकर देखा। मेरे आश्चर्य की कोई सीमा नहीं थी। जेब से नोट की गड्डी निकल आई। ये कैसे चमत्कार हो गया। मुझे आज भी याद है पूरे 3750/- रूपये निकले जो साईं ने ठेकेदार जी को देने के लिये कहा।

यह घटना मैं आज तक नहीं भूल पाया हूँ । जहां मैने पहले जेबे टटोली तब भी पैसे नहीं मिले। पेट्रोल के लिये भी पैसे नहीं थे। फिर अचानक जेब में पैसे कहां से आ गये ये तो स्वयं वे अन्तरयामी भगवान ही जान सकते है।

श्री वाशी दीपा, जाकरता


अनुभव २

बात उस समय की है जब मैं ग्यारवी बोर्ड की परीक्षा दे रही थी। मेरा (गणित) का पेपर बिगड गया था। मैं घर आकर बहुत जोर जोर से रोने लगी। मैने मम्मी से कहा मेरे पेपर बहुत खराब हुआ है। मैं फेल हो जाऊंगी। मुझे इस तरह से रोता देख मम्मी मुझे आदर्श नगर में साईं के पास लेकर आई मैं साईं के चरणों में आकर रोने लगी तभी साईं ने मेरे हाथ में दो किलो घीयर दिये देकर बोले (ही खा ऐ खिल) इसे खाओ और हंस कर घर जाओ।

उनसे आशीर्वाद लेकर मैं घर आयी और अन्य पेपर दिये।

जब कुछ महिनों बाद परीक्षा परिणाम आया तो मैं पुन: घबरा गई अब क्या होगा? उस समय परिणाम अखबार में सुबह सुबह आते थे, जब अखबार हाथ में था तो मैंने डरते डरते पहले पहले अपना रोल नम्बर सप्लीमेंट्री वाले कॉलम में देखा वो वहां नहीं था। फिर द्वितीय श्रेणी में देखा तो वह वहां भी नहीं था। मेरा दिल घबरा गया पर उस समय पिताजी ने मेरा रोल नम्बर प्रथम श्रेणी में देखा तब वे बोले देखो तुम्हारा रोल नम्बर तो यहां है, मुझे तो विश्वास ही नहीं हो रहा था कि मैं प्रथम श्रेणी से पास हूँ । मार्क शीट आने पर मुझे यकीन हुआ मैं गणित में 1 मार्क ग्रेस के साथ पास थी व प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण थी। यह सब मेरे साईं की कृपा थी। उनकी रहमत ने मेरी बिगडी बना दी।

श्रीमती मीना बसंदानी, जयपुर


अनुभव ३

एक बार मैं स्वामी जी के पास गया। उन दिनों स्वामी जी की तबीयत ठीक नहीं थी वे ज्यादा बात नहीं कर पाते थे। मुझे अपने कुछ प्रश्नों के उत्तर स्वामी जी से चाहिये थे। मै बेहद व्याकुल था। मैंने स्वामी जी से कहा साईं मुझसे बात कीजिये। मेरी शंकाओं का समाधान कीजिये। उन्होंने हाथ के इशारे से 5 बजे आने को कहा।

शाम 5 बजे मैं स्वामी जी के पास गया । वे स्वयं उठकर बड़े स्वामी जी (स्वामी टेऊंराम) के मन्दिर में आये । वहां उन्होंने साईं के मन्दिर की परिक्रमा की व मुझसे कहा, पूछो, अब क्या पूछना है। उन्होंने मेरी शंकाओं का अच्छे से समाधान किया। उसके पश्चात उन्होंने मुझे कुर्सी लाने को कहा। मैं कुर्सी लेकर आया। कुर्सी पर बैठने के पश्चात वे पुन: पुरानी अवस्था में आ गये। मैं विस्मित था। साईं मेरे लिये अपने पुराने स्वरूप में आये।

अपने भक्तों के दुख दूर करने के लिये वे हमेशा तत्पर थे। ऐसे गुरू के चरणों में दण्डवत प्रणाम।

श्री वाशी दीपा, जाकरता


अनुभव ४

एक बार स्वामी जी को स्वामी सर्वानंद जी ने सत्संग के पश्चात एक थाल देकर सबको प्रसादी बांटने को कहा। वे भरी भरी मुट्ठी से सबको प्रसाद देने लगे। लगा अगर इस तरह सबको भरी मुट्ठी भरकर प्रसाद बांटते रहेंगे तो सबको प्रसादी कैसे प्राप्त होगी। परन्तु यहां तो वे बांटते जा रहे थे। और कैसे उस थाल में भरकत आती जा रही थी यह महिमा तो वे स्वयं ही जान सकते थे।

श्री वजीरानी जी, मुम्बई


अनुभव ५

हम हर शनिवार डोडा चटनी की सेवा करने के लिये जाया करते थे। सत्संग के पश्चात भण्डारा प्रसाद पाकर आते थे। एक बार साईं जी ने हमें घर जल्दी जाने को कहा। बोले अब जल्दी घर जाओ। हम सोच रहे थे साईं आज क्यों जल्दी जाने को बोल रहे है। पहले तो ऐसा कभी नहीं कहा। उस समय हम ज्यादा वार्तालाप नहीं करते थे। स्वामी जी से विदा लेकर हम जल्दी घर आये। घर पहुँचे ही थे कि कुछ समय पश्चात बहुत आंधी तूफान आने लगा व काफी देर चला। तब हमें समझ आया आज साईं ने हमें क्यों जल्दी घर भेजा। ताकि उनके भक्तों का रास्ते में किसी तकलीफ का सामना न करना पड़े। वे अर्न्तरयामी पहले से ही आंधी व तूफान आने के अन्देशो को जान चुके थे। धन गुरू माधवदास।

श्रीमती निर्मला तुलस्यानी, अजमेर


अनुभव ६

एक बार मेरे पिताजी व चाचाजी अजमेर आये व साईं के दरबार में गये । जब वे साईं से आशीर्वाद लेकर जा रहे थे, उस समय स्वामी जी ने नारायण जी ,जो उस समय उस कमरे में थे ,को उन दोनों को बिस्कुट प्रसाद देने को कहा उस समय स्वामी जी ब्रिटेनिया बिस्कुट प्रसाद में देते थे। नारायण जी ने डिब्बे में हाथ डालकर कहा स्वामी जी डिब्बे में बिस्कुट नहीं है तब स्वामी जी ने स्वयं हाथ डाल कर चार बिस्कुट मेरे पिताजी को व मेरे चाचा जी को निकाल कर दिये। नारायण जी हैरान थे कि अभी इस डिब्बे में कुछ भी नहीं था स्वामी जी बिस्कुट कहां से दे रहे है। मेरे पिताजी व चाचाजी के भी आश्चर्य का ठिकाना नहीं था। यह तो उन्हीं लीलाधर की एक लीला थी।

श्रीमती पूनम डोडानी, अजमेर


अनुभव ७

मेरे पति स्व. श्री ठाकुरदास जी को पथरी हो गयी थी। उस समय पथरी का ईलाज इतना सुगम नहीं थी । मैं अपने पति के साथ उसके इलाज के लिये कानपुर जाने वाली थी। साईं से आशीर्वाद लेने आई कहा, साईं आज्ञा दीजिये व आशीर्वाद दीजिये सब कुशल हो। मैं कानपुर जा रही हूँ । साईं बोले नहीं बेटी तुम कानपुर नहीं जाओंगी। तुम या तो मुम्बई जाओगी या दिल्ली जाओगी। मैं उस समय कुछ समझ नहीं पाई घर पहुँचने पर हम फिर एक बार जब डॉक्टर से मिलने गये तो उन्होंने हमें पथरी के इलाज के लिये मुम्बई जाने को कहा व वहां के डॉक्टर का पता देकर उनसे मिलने को कहा। हम वास्तव में मुम्बई गये। वही पर मेरे पति का पथरी का ऑपरेशन हुआ। स्वामी जी तो जाणी जाणणहार थे। सब कुछ पहले से जानते थे। वार वार वन्दन स्वामी जी।

श्रीमती निर्मला तुलस्यानी, अजमेर




©Prem Prakash Ashram,Adarsh Nagar,Ajmer